छोरा छोरी
बोलो ख़ाला मिज़ाज कैसे हैं? कितने वर्षों के बाद आई हो ?
मिस्सी होठों पे आंख में काजल जैसे पैग़ाम कोई लाई हो ?
लड़के की मां
मेरे छोरे को छोरी होना है मेरा छोरा तो पक्का सोना है
तुमें दिल में ज़रा नको सोचो हाथ आया तो हीरा सोना है
चार लोगाँ में उसकी अबरू है जैसे क्योड़े के बन में खुशबू है
खुले दिल की हूँ सब बताती हूँ खुला मुखलाज में सुनाती हूँ
थोड़ा तिर्पट है और लुल्ला है सीधी आंखों में उसकी फुल्ला है
मुंह पे चेचक के खाली दागाँ हैं रंग डामर से ज़र्रा खुल्ला है
नाक नक्शे का कित्ता अच्छा है मेरा बच्चा तो भोर बच्चा है
इसके दादा भी सौ पे भारी थे यूं तो कम ज़ात के मदारी थे
कँवले झाड़ां की सेंधी पीते थे क्या सलीक़े का जीना जीते थे
पी को निकले तो झाड़ देते थे बावा दादा को गाड़ देते थे
अच्छे अच्छे शरीफ लोगाँ थे जड़ से पंजे उखाड़ देते थे
पहला दरवाज़े बंद करते थे बच्चे गोदां में डर को मरते थे
लड़की की मां
यह तो दुनिया है ऐसा होता है कोई पाता है कोई खोता है
ऐसे वैसों के दिन भी फिरते हैं सर से शाहों के ताज गिरते हैं
मेरी बच्ची तो ख़ैर जैसी है बोलो मर्ज़ी तुम्हारी कैसी है ?
लड़के की मां
छोरी फोलाँ में फूल दिस्ना जी भोली सूरत क़ोबूल दिस्ना जी
इसके लक्षण से चाल नईं पड़ना चाँद पावां की धूल दिस्ना जी
मुंह को देखे तो भूख मरजाना प्यासी अंखिया से प्यास मर जाना
लचके कम्मर तो बेद शर्माना लपके चोटिया तो नाग डर जाना
ज़ुल्फ़ाँ लोबान का धुआँ दिस्ना लाल होटाँ को ग़ुन्चे मरजाना
अच्छी ग़ुन्ची हो अच्छा पाँव हो घर में लछमी के सर की छाँव हो
हंडिया धोने की उसको आदत हो बोझा ढोने की उसको आदत हो
सारे घर बार को खिला दे वह भूका सोने की उसको आदत हो
पाक सीता हो सच्ची माई हो पूरी अल्लाह मियां की गाई हो
गल्ला काटे तो हंस के मरजाना बेटी दुनिया में नाम कर जाना
बाहर वाले तो बहुत पूछेंगे घर का बच्चा है घर का ज़ेवर देव
रेडियो सईकल तो दुनिया देतिच है अल्लाह दे रहा है तो एक मोटर देव
बहुत चीज़ां नको जी ! थोड़े बस एक बंगला, हज़ार जोड़े बस
घोड़ा जोड़ा क्या ले को धरना है ? खाली 25 लाख होना है
लड़की की मां
तुमें कित्ते ज़लील लोगाँ हैं तुमें कित्ते ज़लील लोगाँ हैं
इतने में लड़की का बाप अंदर आता है और अपनी पगड़ी उतार के लड़के की माँ के चरणों में रख देता है और कहता है :
जिसकी बेटी जवान होती है किस मुसीबत में जान होती है ?
बूढ़े मां बाप के कलेजे पर एक भारी चटान होती है
बहनें घर में जवान बैठी हैं भाई चुप है कि कह नहीं सकता
माँ तो घुल-2 के खुद ही मरती है बाप बेटी को सह नहीं सकता
जी में आता है अपनी बच्ची को अपने हाथों से खुद ही दफना दें
लाल जोड़े तो दे नहीं सकते लाल चादर में क्यों न कफना दें
यह भी दुल्हन है घर से जाती है मौत मुफ़लिस को क्या सुहाती है
यह सुहागन है इसको काँधा दो हमने खून-ए-जिगर से पाला है
इसकी तुर्बत पे ये भी लिख देना ज़रपरस्तों ने मार डाला है
नोट : घोड़ा जोड़ा : हैदराबाद ( भारतीय ) की एक रस्म है, जिसमें लड़के वाले अपनी मांग रखते हैं और लड़की वालों को बस हाँ कहना पड़ता है। .
अबरूः इज़्ज़त, मुखलाजः कहानी, ग़ुन्चेः कली और फूल के बीच की अवस्था, गाईः गाय (दकनी उच्चारण), बाहर वालेः दूसरे लोग, ज़लीलः निर्लज्ज, मुफ़लिसः ग़रीब, ज़रपरस्तः सोने की पूजा करने वाले।